रविवार, 19 मई 2013

शत्रु-नाशक प्रयोग-श्रीकृष्ण कीलक


श्रीकृष्ण कीलक
ॐ गोपिका-वृन्द-मध्यस्थं, रास-क्रीडा-स-मण्डलम्।
क्लम प्रसति केशालिं, भजेऽम्बुज-रूचि हरिम्।।
विद्रावय महा-शत्रून्, जल-स्थल-गतान् प्रभो !
ममाभीष्ट-वरं देहि, श्रीमत्-कमल-लोचन !।।
भवाम्बुधेः पाहि पाहि, प्राण-नाथ, कृपा-कर !
हर त्वं सर्व-पापानि, वांछा-कल्प-तरोर्मम।।
जले रक्ष स्थले रक्ष, रक्ष मां भव-सागरात्।
कूष्माण्डान् भूत-गणान्, चूर्णय त्वं महा-भयम्।।
शंख-स्वनेन शत्रूणां, हृदयानि विकम्पय।
देहि देहि महा-भूति, सर्व-सम्पत्-करं परम्।।
वंशी-मोहन-मायेश, गोपी-चित्त-प्रसादक !
ज्वरं दाहं मनो दाहं, बन्ध बन्धनजं भयम्।।
निष्पीडय सद्यः सदा, गदा-धर गदाऽग्रजः !
इति श्रीगोपिका-कान्तं, कीलकं परि-कीर्तितम्।
यः पठेत् निशि वा पंच, मनोऽभिलषितं भवेत्।
सकृत् वा पंचवारं वा, यः पठेत् तु चतुष्पथे।।
शत्रवः तस्य विच्छिनाः, स्थान-भ्रष्टा पलायिनः।
दरिद्रा भिक्षुरूपेण, क्लिश्यन्ते नात्र संशयः।।
ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा।।
विशेष – एक बार माता पार्वती कृष्ण बनी तथा श्री शिवजी माँ राधा बने। उन्हीं पार्वती रूप कृष्ण की उपासना हेतु उक्त ‘कृष्ण-कीलक’ की रचना हुई।
यदि रात्रि में घर पर इसके 5 पाठ करें, तो मनोकामना पूरी होगी। दुष्ट लोग यदि दुःख देते हों, तो सूर्यास्त के बाद चैराहे पर एक या पाँच पाठ करे, तो शत्रु विच्छिन होकर दरिद्रता एवं व्याधि से पीड़ित होकर भाग जायेगें।

महा-लक्ष्मी मन्त्र

“राम-राम क्ता करे, चीनी मेरा नाम। सर्व-नगरी बस में करुँ, मोहूँ सारा गाँव।
राजा की बकरी करुँ, नगरी करुँ बिलाई। नीचा में ऊँचा करुँ, सिद्ध गोरखनाथ की दुहाई।।”
विधिः- जिस दिन गुरु-पुष्य योग हो, उस दिन से प्रतिदिन एकान्त में बैठ कर कमल-गट्टे की माला से उक्त मन्त्र को १०८ बार जपें। ४० दिनों में यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है, फिर नित्य ११ बार जप करते रहें।