मंगलवार, 5 नवंबर 2013

व्यापार

अधिकतर मामलों में व्यापार करते हुये धन की कमी होती है,लगातार प्रतिस्पर्धा के कारण लोग व्यवसाय को काटते है,और ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित करते है, अपनी बिजनिस बढाने के लिये तांत्रिक उपाय करते है, और उन तांत्रिक उपायों को करने के बाद खुद तो उल्टा सीधा कमाते है,लेकिन अपने सामने वाले को भी बरबाद करते है तथा कुछ दिनों में उनके द्वारा किये गये तांत्रिक उपायों का असर खत्म हो जाने पर दिवालिया बन कर घूमने लगते है। अपने व्यवसाय स्थल से नकारात्मक ऊर्जा को हटाने और ग्राहकी बढाने का तरीका आपको बता रहा हूँ, इस तरीके को प्रयोग करने के बाद आप खुद ही महसूस करने लगेंगे ।

सोमवार के दिन किसी नगीने बेचने वाले से तीन गारनेट के नग खरीदकर लाइये, और रात को उन्हे किसी साफ कांच के बर्तन में पानी में डुबोकर खुले स्थान में रख दीजिये,उन नगों को लगातार नौ दिन तक यानी अगले मंगलवार तक उसी स्थान पर रखा रहने दीजिये, और मंगलवार की शाम को उन नगीनों को मय उस पानी के उठा लीजिये,बुधवार को उस पानी से नगीनों को अपने व्यवसाय वाले स्थान पर निकाल लीजिये और पानी को व्यवसाय स्थान के सभी कोनों और अन्धेरी जगह पर कैस काउन्टर और टेबिल ड्रावर के अन्दर छिडक दीजिये, तथा उन नगीनों को (तीनों को) अपनी टेबिल पर सजाकर सामने रख लीजिये, इस प्रकार से आपके व्यापारिक स्थान की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जायेगी, और सकारात्मक ऊर्जा आने लगेगी । नगीनों को सम्भाल कर रखे,जिससे कोई उन्हे ले न जा सके।

मंगल दोष

मंगल चंडिका प्रयोग
प्रथम :- मंत्र और स्त्रोत्र प्रयोग
यह प्रयोग मंगली लोगो को मंगल की वजह से उनके विवाह, काम-धंधे में आ रही रूकावटो को दूर कर देता है
मंत्र:- ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा
( देवी भगवत के अनुसार अन्य मंत्र :- ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा )
दोनों में से कोई भी मन्त्र जप सकते है
ध्यान :-
देवी षोडश वर्षीया शास्वत्सुस्थिर योवनाम| सर्वरूप गुणाढ्यं च कोमलांगी मनोहराम|
स्वेत चम्पक वऱॅणाभाम चन्द्र कोटि सम्प्रभाम| वन्हिशुद्धाशुका धानां रत्न भूषण भूषिताम|
बिभ्रतीं कवरीभारं मल्लिका माल्य भूषितं| बिम्बोष्ठिं सुदतीं शुद्धां शरत पद्म निभाननाम|
ईशदहास्य प्रसन्नास्यां सुनिलोत्पल लोचनाम| जगद धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्य सम्पत्प्रदाम|
संसार सागरेघोरे पोत रूपां वरां भजे|
स्त्रोत्र:-
||शंकर उवाच||
रक्ष रक्ष जगन मातर देवी मंगल चण्डिके | हारिके विपदां राशे: हर्ष मंगल कारिके ||
हर्ष मंगल दक्षे च हर्ष मंगल चण्डिके | शुभ मंगल दक्षे च शुभ मंगल चण्डिके ||
मंगले मंगलार्हे च सर्व मंगल मंगले | सतां मंगलदे देवी सर्वेषां मंग्लालये ||
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट दैवते | पूज्य मंगल भूपस्य मनुवंशस्य संततम ||
मंगलाधिष्ठात्रिदेवी मंगलानां च मंगले | संसार मंगलाधारे मोक्ष मंगलदायिनी ||
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम | प्रति मंगलवारे च पूज्य च मंगलप्रदे ||
स्त्रोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मंगल चंडीकाम | प्रति मंगलवारे च पूजां कृत्वा गत: शिव: ||
देव्याश्च मंगल स्त्रोत्रम यं श्रुणोति समाहित: | तन्मंगलं भवेत्श्चान्न भवेत् तद मंगलं ||

विधि विधान :-
मंगलवार को संध्या समय पर स्नान करके पवित्र होकर एक पंचमुखी दीपक जलाकर माँ मंगल चंडिका की पूजा श्रधा भक्ति पूर्वक करे/ माँ को एक नारियल और खीर का भोग लगाये | उपरोक्त दोनों में से किसी एक मंत्र का मन ही मन १०८ बार जप करे तथा स्त्रोत्र का ११ बार उच्च स्वर से श्रद्धा पूर्वक प्रेम सहित पाठ करे | ऐसा आठ मंगलवार को करे | आठवे मंगलवार को किसी भी सुहागिन स्त्री को लाल ब्लाउज, लाल रिब्बन, लाल चूड़ी, कुमकुम, लाल सिंदूर, पान-सुपारी, हल्दी, स्वादिष्ट फल, फूल आदि देकर संतुष्ट करे | अगर कुंवारी कन्या या पुरुष इस प्रयोग को कर रहे है तो वो अंजुली भर कर चने भी सुहागिन स्त्री को दे , ऐसा करने से उनका मंगल दोष शांत हो जायेगा | इस प्रयोग में व्रत रहने की आवश्यकता नहीं है अगर आप शाम को न कर सके तो सुबह कर सकते है |
यह अनुभूत प्रयोग है और आठ सप्ताह में ही चमत्कारिक रूप से शादी-विवाह की समस्या, धन की समस्या, व्यापार की समस्या, गृह-कलेश, विद्या प्राप्ति आदि में चमत्कारिक रूप से लाभ होता है

।। श्रीमद् हनुमन्त बीसा ।।

।। श्रीमद् हनुमन्त बीसा ।।
।।दोहा।।
राम भक्त विनती करूँ,सुन लो मेरी बात ।
दया करो कुछ मेहर उपाओ, सिर पर रखो हाथ ।।
।।चौपाई।।
जय हनुमन्त, जय तेरा बीसा,
कालनेमि को जैसे खींचा ।।१
करुणा पर दो कान हमारो,
शत्रु हमारे तत्क्षण मारो ।।२
राम भक्त जय जय हनुमन्ता,
लंका को थे किये विध्वंसा ।।३
सीता खोज खबर तुम लाए,
अजर अमर के आशीष पाए ।।४
लक्ष्मण प्राण विधाता हो तुम,
राम के अतिशय पासा हो तुम ।।५
जिस पर होते तुम अनुकूला,
वह रहता पतझड़ में फूला ।।६
राम भक्त तुम मेरी आशा,
तुम्हें ध्याऊँ मैं दिन राता ।।७
आकर मेरे काज संवारो,
शत्रु हमारे तत्क्षण मारो ।।८
तुम्हरी दया से हम चलते हैं,
लोग न जाने क्यों जलते हैं ।।९
भक्त जनों के संकट टारे,
राम द्वार के हो रखवारे ।।१०
मेरे संकट दूर हटा दो,
द्विविधा मेरी तुरन्त मिटा दो ।।११
रुद्रावतार हो मेरे स्वामी,
तुम्हरे जैसा कोई नाहीं ।।१२
ॐ हनु हनु हनुमन्त का बीसा,
बैरिहु मारु जगत के ईशा ।।१३
तुम्हरो नाम जहाँ पढ़ जावे,
बैरि व्याधि न नेरे आवे ।।१४
तुम्हरा नाम जगत सुखदाता,
खुल जाता है राम दरवाजा ।।१५
संकट मोचन प्रभु हमारो,
भूत प्रेत पिशाच को मारो ।।१६
अंजनी पुत्र नाम हनुमन्ता,
सर्व जगत बजता है डंका ।।१७
सर्व व्याधि नष्ट जो जावे,
हनुमद् बीसा जो कह पावे ।।१८
संकट एक न रहता उसको,
हं हं हनुमंत कहता नर जो ।।१९
ह्रीं हनुमंते नमः जो कहता,
उससे तो दुख दूर ही रहता ।।२०
।। दोहा।।
मेरे राम भक्त हनुमन्ता, कर दो बेड़ा पार ।
हूँ दीन मलीन कुलीन बड़ा, कर लो मुझे स्वीकार ।।
राम लषन सीता सहित, करो मेरा कल्याण ।
ताप हरो तुम मेरे स्वामी, बना रहे सम्मान ।।
प्रभु राम जी माता जानकी जी, सदा हों सहाई ।
संकट पड़ा यशपाल पे, तभी आवाज लगाई ।।
।।इति श्रीमद् हनुमन्त बीसा श्री यशपाल जी कृत समाप्तम्।।

कामख्या साधना

कामख्या साधना
यह मंत्र वेदोक्त है और पुर्णता प्रभवि भि है, सिर्फ 3 हि दिन मे इस मंत्रा कि अनुभुतिया हमारे सामने आती है,इस साधनासे कइ अपुर्ण इच्याये त्वरित पूर्ण हो जाति है,परंतु मन मे अविश्वास जाग्रत हो तो साधना कि अनुभुतिया नहीं मिल पाति है, और ये साधना कम से कम 11 दिन तो करनि हि चहिये.
साधना किसी भि नवरात्रि मे कर सक्ते है, रोज मंत्र कि 108 बार पाठ मतलब 1 माला करनि है, आप चाहे तो अपनी अनुकुलता के नुसार 3, 5, या 11 मालाये भि कर सक्ते है,आसन लाल रंग कि हो वस्त्र कोइ भि हो सक्ति है,माला लाल हकिक या रुद्राक्ष कि.
मा भगवति या कामाख्या जि का चित्र स्थापित किजिये और चमेलि कि तेल का दिपक आवश्यक है,साथ मे साधना से पुर्व हि गुरुपूजन और गुरुमंत्रा कि जाप भि आवश्यक है,फिर कालभैरव मंत्रा कि 21 ,51 या 108 बार जाप भि आवश्यक है,और सद्गुरुजि से अपनि कामनापुर्ति हेतु प्रार्थना किजिये और कालभैरव जि से आज्ञा मांगिये.
॥ ॐ ह्रीम कालभैरवाय ह्रीम ॐ ॥
 अपनी मनोकामना का उच्यारन करते हुये एक लाल कनेर का फूल भगवति जि कि चरणोमे समर्पित किजिये और मंत्र जाप प्रारम्भ किजिये.

मंत्र : -
 ॐ कामाख्याम कामसम्पन्नाम कामेश्वरिम हरप्रियाम ।
       कामनाम देहि मे नित्यम कामेश्वरि नमोस्तुते ॥

लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार

1॰ लक्ष्मी शाबर मन्त्र
“विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रकट हुई। कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल मूर्ति अपार, दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई कामाक्षा की। आय बढ़ा व्यय घटा। दया कर माई। ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय। ॐ नमः कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधिः- धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा कर सवा लक्ष जप करें। लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार प्रत्यक्ष दिखाई देगा। रुके कार्य होंगे। लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।
2॰ दुर्गा शाबर मन्त्र
“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह-वाहिनी। बीस-हस्ती भगवती, रत्न-मण्डित सोनन की माल। उत्तर-पथ में आप बैठी, हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि। धन-धान्य देहि देहि, कुरु कुरु स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर आवश्यकतानुसार श्रद्धा से एक माला जप करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त होती है, नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में वृद्धि होती है।

रविवार, 19 मई 2013

शत्रु-नाशक प्रयोग-श्रीकृष्ण कीलक


श्रीकृष्ण कीलक
ॐ गोपिका-वृन्द-मध्यस्थं, रास-क्रीडा-स-मण्डलम्।
क्लम प्रसति केशालिं, भजेऽम्बुज-रूचि हरिम्।।
विद्रावय महा-शत्रून्, जल-स्थल-गतान् प्रभो !
ममाभीष्ट-वरं देहि, श्रीमत्-कमल-लोचन !।।
भवाम्बुधेः पाहि पाहि, प्राण-नाथ, कृपा-कर !
हर त्वं सर्व-पापानि, वांछा-कल्प-तरोर्मम।।
जले रक्ष स्थले रक्ष, रक्ष मां भव-सागरात्।
कूष्माण्डान् भूत-गणान्, चूर्णय त्वं महा-भयम्।।
शंख-स्वनेन शत्रूणां, हृदयानि विकम्पय।
देहि देहि महा-भूति, सर्व-सम्पत्-करं परम्।।
वंशी-मोहन-मायेश, गोपी-चित्त-प्रसादक !
ज्वरं दाहं मनो दाहं, बन्ध बन्धनजं भयम्।।
निष्पीडय सद्यः सदा, गदा-धर गदाऽग्रजः !
इति श्रीगोपिका-कान्तं, कीलकं परि-कीर्तितम्।
यः पठेत् निशि वा पंच, मनोऽभिलषितं भवेत्।
सकृत् वा पंचवारं वा, यः पठेत् तु चतुष्पथे।।
शत्रवः तस्य विच्छिनाः, स्थान-भ्रष्टा पलायिनः।
दरिद्रा भिक्षुरूपेण, क्लिश्यन्ते नात्र संशयः।।
ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा।।
विशेष – एक बार माता पार्वती कृष्ण बनी तथा श्री शिवजी माँ राधा बने। उन्हीं पार्वती रूप कृष्ण की उपासना हेतु उक्त ‘कृष्ण-कीलक’ की रचना हुई।
यदि रात्रि में घर पर इसके 5 पाठ करें, तो मनोकामना पूरी होगी। दुष्ट लोग यदि दुःख देते हों, तो सूर्यास्त के बाद चैराहे पर एक या पाँच पाठ करे, तो शत्रु विच्छिन होकर दरिद्रता एवं व्याधि से पीड़ित होकर भाग जायेगें।

महा-लक्ष्मी मन्त्र

“राम-राम क्ता करे, चीनी मेरा नाम। सर्व-नगरी बस में करुँ, मोहूँ सारा गाँव।
राजा की बकरी करुँ, नगरी करुँ बिलाई। नीचा में ऊँचा करुँ, सिद्ध गोरखनाथ की दुहाई।।”
विधिः- जिस दिन गुरु-पुष्य योग हो, उस दिन से प्रतिदिन एकान्त में बैठ कर कमल-गट्टे की माला से उक्त मन्त्र को १०८ बार जपें। ४० दिनों में यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है, फिर नित्य ११ बार जप करते रहें।